supreme court : क्या आपकी प्राइवेट प्रोपर्टी पर भी है सरकार का हक, सुप्रीम कोर्ट ने दिया सुप्रीम फैसला

My job alarm-(supreme court decision) आजकल लोग जब भी प्रोपर्टी या जमीन खरीदते हैं तो इस बात को जरूर ध्यान में रखते हैं कि कहीं ऐसे चांस तो नहीं बन रहे कि यह प्रोपर्टी भविष्य में सरकार की ओर से अधिग्रहित कर ली जाए या कब्जे में ले ली जाए। हालांकि इसके कानूनी प्रावधान (private propery acquiring rules)भी हैं, लेकिन अधिकतर लोग इस बारे में कंफ्यूज रहते हैं कि हर निजी संपत्ति को सरकार अपने कब्जे में ले सकती है या नहीं।

इस पर अब सुप्रीम कोर्ट ने कई याचिकाओं का निपटारा करते हुए बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने अपना फैसला सुनाने के साथ ही लगभग 46 साल पहले का इसी मामले में सुनाया गया फैसला भी पलट दिया है। इसलिए अब नए फैसले को ऐतिहासिक माना जा रहा है। कोर्ट का यह फैसला आते ही राज्य सरकारों के निजी संपत्ति (govt acquiring rules for private property)को लेकर कई अधिकार भी छिन गए हैं। 

ये थे फैसला सुनाने वाली बेंच में शामिल

निजी संपत्ति पर सरकार के अधिकार (private property par sarkar ka hak)को लेकर जुड़े इस मामले का फैसला सुनाने वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच में सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ सहित जस्टिस ऋषिकेश रॉय, जस्टिस बीवी नागरत्ना, जस्टिस सुधांशु धूलिया,  जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह शामिल रहे।

इनमें से दो जस्टिस की राय भिन्न रही। इनमें से जस्टिस बीवी नागरत्ना फैसले से कुछ असहमत थे तो जस्टिस सुधांशु धूलिया पूर्ण रूप से असहमत थे। अन्य 7 का कहना था कि राज्य सरकारों द्वारा हर निजी संपत्ति को आम भलाई के लिए कब्जे (kya private property ko sarkar kabje me le sakti hai) में नहीं लिया जा सकता । ऐसा कुछ मामलों में हो सकता है। 

SC ने पलट दिया अपना ही फैसला

साल 1978 में यानी करीब 46 साल पहले इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की ओर से जो फैसला सुनाया गया था, उसे सुप्रीम कोर्ट ने ही खारिज करते हुए पलट दिया है। उक्त निर्णय उस समय जस्टिस कृष्णा अय्यर ने सुनाया था। जस्टिस अय्यर ने के सुनाए फैसले के अनुसार सभी निजी संपत्तियों को समुदाय की भौतिक संपत्ति (niji sampatti par sarkar ka kitna hak) माना गया था। फैसले में यह भी स्पष्ट किया गया था कि निजी स्वामित्व वाले संसाधनों को राज्य द्वारा अधिग्रहित किया जा सकता है। इस फैसले को अब पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि तब समाजवादी अर्थव्यवस्था था। अब बाजार उन्मुख अर्थव्यवस्था (india economy) का युग है। अब विकसित देशों की पंक्ति में खड़ा होने के लिए विकासशील भारत के सामने आने वाली चुनौतियों का सामना करना भी जरूरी है।

कोर्ट ने अनुच्छेद 31सी लागू रहने की बात कही

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि अनुच्छेद 31सी असंशोधित रूप में ही लागू रहेगा। हर निजी संपत्ति को समुदाय का भौतिक ससाधन नहीं कहा जा सकता यह कुछ संपत्तियों के संदर्भ में तो हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा तीन दशक में भारत द्वारा अर्थव्यस्था में की गई प्रगति का हवाला देते हुए कहा कि विशेष गतिशील आर्थिक नीति के कारण  भारत ने सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में पहचान बनाई है। भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India) डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud)ने सात जजों का एकमत निर्णय सुनाते हुए कहा कि अनुच्छेद 31सी को केशवानंद भारती मामले में जैसे बरकरार रखा था, वह वैसे ही है। 

जानिये अनुच्छेद 39 (बी) के बारे में

संविधान में अनुच्छेद 39 (बी) (Article 39(b) me kya hai) निजी संपत्तियों और ‘सार्वजनिक भलाई’ के लिए संपत्ति के अधिग्रहण और पुनर्वितरण को लेकर राज्य सरकारों की पावर से जुड़ा है। अनुच्छेद 39(बी) को निरस्त करने और उसे उसी समय में प्रतिस्थापित करने को लेकर सीजेआई ने कहा कि अनुच्छेद 39(बी) (sc decision on Article 39(b))को लेकर संविधान में 42वें संशोधन की धारा 4 का उद्देश्य भी यही था। उन्होंने टिप्पणी की कि इस मुद्दे पर मूल प्रावधान को छोटा करना तर्कसंगत नहीं । कानून को देखते हुए निरस्तीकरण को प्रभावी नहीं बनाया जा सकता, इसलिए अधिनियमन करना जरूरी है।

सुप्रीम कोर्ट ने एक साथ सुनाया कई याचिकाओं पर फैसला

सुप्रीम कोर्ट में निजी संपत्ति से जुड़ी कई याचिकाएं पेंडिंग थीं। कोर्ट ने 16 याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया है। इन्हीं याचिकाओं में मुंबई के प्रॉपर्टी मालिकों की याचिका भी शामिल रही। 1986 में महाराष्ट्र में निजी संपत्ति को लेकर कानून (Law regarding private property in Maharashtra) में संशोधन किया गया था। इस दौरान राज्य सरकार को कई अधिकार प्रदान किए गए थे। इन अधिकारों में सरकार को प्राइवेट बिल्डिंग को मरम्मत और सुरक्षा के लिए अपने कब्जे में लेने का अधिकार भी मिला था। मुंबई के प्रॉपर्टी मालिकों ने याचिका लगाकर कहा था कि कानून में यह संशोधन सरासर गलत है और हितकारी नहीं है।

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