Property Knowledge : अधिकतर लोग नहीं जानते, विरासत में मिली संपत्ति और पैतृक संपत्ति में क्या है अंतर
My job alarm – (Property Rights Rules) संपत्ति पर अधिकार और दावे को लेकर कानूनी समझ और नियमों की जानकारी बहुत महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि गलत जानकारी के कारण लोग कई बार कानूनी झंझटों में फंस सकते हैं। खासकर जब बात विरासत में मिली संपत्ति और पैतृक संपत्ति की होती है, तो बहुत से लोग इसे एक ही समझते हैं, जबकि दोनों में कानूनी दृष्टिकोण से फर्क होता है। इसलिए, जब भी संपत्ति के (state property rights) अधिकार और दावे की बात आती है, तो यह महत्वपूर्ण है कि आपको कानूनी समझ हो और आप सही दस्तावेजों और प्रक्रियाओं का पालन करें। इससे आप किसी भी प्रकार के विवाद से बच सकते हैं और अपनी संपत्ति पर अपने अधिकार का सही तरीके से दावा कर सकते हैं।
विरासत में मिली संपत्ति वह संपत्ति होती है जो किसी व्यक्ति को उसके परिवार के किसी सदस्य से, जैसे पिता, दादा, परदादा (property rights in economics) आदि से मिलती है। इसका अधिकार उस व्यक्ति को तब मिलता है जब संपत्ति पर उसके पूर्वज का निधन हो जाता है या संपत्ति की बंटवारे की प्रक्रिया होती है। इस संपत्ति पर कानूनी अधिकार उस व्यक्ति को तब तक मिलता है जब तक वह अन्यथा उसे किसी और के नाम न कर दे।
पैतृक संपत्ति खासतौर पर उस संपत्ति को कहा जाता है जो एक परिवार की चार पीढ़ियों तक अविभाजित रहती है। इस संपत्ति पर अधिकार उन सभी के होते हैं जो उस परिवार के सदस्य होते हैं, जैसे पिता, दादा, परदादा, बेटे आदि। जब तक इस संपत्ति का बंटवारा नहीं होता, तब तक उसे पैतृक (private property rights definition) संपत्ति माना जाता है। अगर बंटवारा हो जाता है, तो वह पैतृक संपत्ति का दर्जा खो देती है और अब यह सिर्फ एक सामान्य संपत्ति बन जाती है। इसलिए, एक अहम फर्क यह है कि पैतृक संपत्ति का दर्जा केवल अविभाजित संपत्ति के लिए होता है, जबकि विरासत में मिली संपत्ति का कोई खास समय सीमा या शर्त नहीं होती है।
पैतृक संपत्ति से कर सकते बेदखल –
यह भारतीय संपत्ति और पारिवारिक विवादों के कानूनी पहलुओं को समझने के लिए महत्वपूर्ण जानकारी है। आमतौर पर किसी व्यक्ति को उसकी पैतृक संपत्ति से बेदखल करना संभव नहीं होता, क्योंकि यह (importance of property rights) संपत्ति चार पीढ़ियों तक परिवार के सभी सदस्य का अधिकार होती है। हालांकि, अगर किसी व्यक्ति ने अपनी कमाई हुई संपत्ति का हिस्सा छोड़ा हो या अगर संपत्ति के बंटवारे में कोई स्पष्ट कानूनी मामला हो, तो माता-पिता उसे बाहर कर सकते हैं।
इसके अतिरिक्त, अगर कोई व्यक्ति अपनी पैतृक संपत्ति से बेदखल होता है, तो वह फिर भी संपत्ति पर अपना दावा कर सकता है, और इसके लिए उसे 12 साल का समय मिलता है। यदि कोई व्यक्ति इस दौरान (4 Types property rights) दावा नहीं करता है, तो भी कोर्ट स्थिति और परिस्थितियों के आधार पर उस दावे की अनुमति दे सकता है। इस मामले में, अदालत की कार्रवाई और निर्णय की प्रक्रिया में विभिन्न कानूनी दांव-पेंच होते हैं, जो कि संपत्ति विवादों के मामले में काफी सामान्य हैं।
पुश्तैनी संपत्ति पर 4 पीढ़ियों का होता है अधिकार –
पुश्तैनी संपत्ति का अधिकार एक महत्वपूर्ण कानूनी विषय है, जिसे भारतीय संपत्ति कानून और परिवार कानून द्वारा निर्धारित (types of property rights) किया जाता है। जैसे कि आपने बताया, यह संपत्ति आमतौर पर चार पीढ़ियों तक एक परिवार के सदस्यों का अधिकार होती है, बशर्ते कि वह संपत्ति अविभाजित रहे। अगर संपत्ति में बंटवारा हो जाता है, तो उसे अब “पुश्तैनी संपत्ति” नहीं माना जाता और इसका दर्जा खत्म हो जाता है।
यहां कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं:-
अविभाजित संपत्ति: जब संपत्ति परिवार के सभी सदस्य (परदादा, दादा, पिता, बेटे) एक साथ साझा करते हैं और उसकी कोई बांट नहीं की जाती, तो यह संपत्ति “पुश्तैनी संपत्ति” कहलाती है। इसमें सभी परिवार के सदस्य का समान अधिकार होता है।
बंटवारा होने पर: अगर किसी पीढ़ी ने संपत्ति का बंटवारा किया, तो वह संपत्ति अब “पुश्तैनी संपत्ति” नहीं रह जाती। इस बंटवारे के बाद अगर किसी सदस्य को संपत्ति से बेदखल किया जाता है, तो वह पहले की तरह इस संपत्ति पर हक नहीं जता सकता।
चार पीढ़ियों तक का अधिकार: यह संपत्ति अगली चार पीढ़ियों के लिए एक कानूनी अधिकार के रूप में मानी जाती है, लेकिन बंटवारे के बाद यह अधिकार समाप्त हो जाता है। इस तरह का बंटवारा संपत्ति के पारंपरिक दर्जे को छीन सकता है, और इसके बाद किसी को उस संपत्ति पर स्वीकृत अधिकार नहीं रहता।
इसलिए, यदि संपत्ति का बंटवारा होता है, तो परिवार के अन्य सदस्य अब उसे पुश्तैनी संपत्ति के रूप में नहीं देख सकते और उन्हें कानूनी तरीके से अपनी हिस्सेदारी की मांग करनी पड़ सकती है, जो कि बंटवारे के बाद पूरी तरह से बदल जाती है।
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