property dispute: बिन ब्याही मां के बेटे को हाईकोर्ट ने 30 साल बाद दिया प्रोपर्टी में हिस्सा

My job alarm (property dispute) : संपत्ति के मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हाल ही में एक जरूरी फैसला सुनाया हैं। बता दें कि पुरा मामला ये हैं कि एक अविवाहित महिला से जन्मे बच्चे की संपत्ति में अधिकार को लेकर केस दर्ज कराया गया था। लेकिन पहले यह मामला सिर्फ फैमिली कोर्ट (unmarried mother son got rights) तक ही पहुंचा था। लेकिन वहां से इस केस को खारिज कर दिया गया। लेकिन इसके बाद फैमिली कोर्ट के आदेश को पलटते हुए जस्टिस गौतम भादुड़ी और रजनी दुबे की खंडपीठ ने फैसला सुनाया कि निचली अदालत का फैसला गलत हैं और कानून के अनुरूप हैं। 

इस मामले में हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अविवाहित महिला से जन्मे 30 वर्षीय व्यक्ति वैध पुत्र हैं और उसे उसका (highcourt big decision) वास्तविक दर्जा और अधिकार प्रदान किया जाएगा। साथ ही अपने जैविक पिता से सभी कानूनी लाभ पाने का हकदार है। 

 

जैविक पिता से की थी संपत्ति की मांग
इस मामले में सूरजपुर जिले के रहने वाले इस व्यक्ति ने अपने जैविक पिता से भरण-पोषण और संपत्ति में हिस्सा मांगा था। फैमिली कोर्ट ने उसकी याचिका को खारिज कर दी थी। इसके बाद आरोपी ने हाईकोर्ट में ये (biological father property) केस दायर किया था। याचिका के अनुसार, व्यक्ति के जैविक पिता और मां पड़ोसी थे और उनके बीच प्रेम संबंध थे, जिसके कारण वह गर्भवती हो गई।

 

मां ने दिया जन्म

प्रेम संबधों में गर्भ धारण के चलते पिता ने गर्भपात पर जोर दिया, लेकिन मां ने इनकार कर दिया और रेप के लिए पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। उसने नवंबर 1995 में लड़के को जन्म दिया और उसे (property of biological father) अकेली मां के रूप में पाला। आय का कोई स्रोत न होने और सामाजिक बहिष्कार का सामना करने के कारण, मां ने वादी के साथ मिलकर सूरजपुर फैमिली कोर्ट में धारा 125 सीआरपीसी के तहत पिता के खिलाफ भरण-पोषण का मामला दायर किया।

 

 

पिता करते रहे इनकार

आपको जानकर हैरानी होगी कि इस मामले में आरोपी आदमी पितृत्व से इनकार करता रहा। इसके साथ ही पिता के नाम को सूचीबद्ध करने वाले आधिकारिक और गैर-सरकारी दस्तावेजों सहित कुछ (unmarried mother son got rights) सबूतों के बावजूद सच सामने आ गया। पारिवारिक न्यायालय ने संपत्ति के अधिकार देने के खिलाफ फैसला सुनाया, जिसमें कहा गया कि वे ‘वैवाहिक क्षेत्र’ में नहीं आते हैं।

 

अप्रैल में युवक पड़ गया बीमार
दरअसल, हक मांगने की शुरूआत ऐसे हुई की अप्रैल में, युवक को बीमारी का सामना करना पडा और आर्थिक कठिनाइयों के चलते वह अपना इलाज नहीं करवा पा रहा था। जिसके चलते आर्थिक मदद के लिए अपने जैविक पिता से संपर्क किया, लेकिन उसे मना कर दिया गया। इसके कारण उसने पारिवारिक न्यायालय में संपत्ति का दावा दायर किया, जिसे फिर से खारिज कर दिया गया, जिससे उच्च न्यायालय में अपील की गई।

 

फैमिली कोर्ट के फैसले को पलट दिया
इस मामले में हाई कोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि सीमा अधिनियम के तहत इस तरह के अधिकारों को मांगने की कोई समय सीमा नहीं हैं। साथ ही इस बात पर जोर दिया कि न्यायालय हमेशा उन बच्चों के लिए (High Court Decision) उपलब्ध है जिन्हें उनके अधिकारों से वंचित किया गया है। एचसी ने पारिवारिक न्यायालय के फैसले को त्रुटिपूर्ण और ‘कानूनी रूप से असंतुलित’ पाया। वहीं, हाईकोर्ट नेअपने फैसले में, उच्च न्यायालय ने युवक को उसके माता-पिता दोनों का वैध पुत्र घोषित किया तथा उसे अपने पिता द्वारा दिए जाने वाले सभी लाभों का हकदार घोषित किया।

 

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