लोग ताने देते थे तुम भी अपने पिता की तरह रिक्शा चलाओगे, बेटे ने आईएएस बनकर सबको चौकाया
यूपीएससी एक ऐसा सपना है जिसको पूरा करने के लिए विद्यार्थी रात दिन मेहनत करते हैं. भारत में कई साल लाखों विद्यार्थी परीक्षा में बैठते हैं लेकिन कुछ ही विद्यार्थी इस परीक्षा को पास कर पाते हैं. इस परीक्षा को पास करने के लिए जो संयम के साथ तैयारी करता है वही पास हो पाता है. आज हम आपके लिए एक ऐसे आईएस की कहानी लेकर आए हैं जो लाख कठिनाइयों और मुश्किलों का सामना करते हुए अपने आईएस के सफर को तय किया और अपना सपना पूरा किया. आपके लिए लाए हैं आईएएस गोविंद जयसवाल की कहानी जो एक रिक्शा चालक के बेटे हैं. उनका मानना था कि गोविंद भी अपने पिता की तरह रिश्ता ही चलाएंगे लेकिन उन्होंने आईएएस बन के लोगो के बातों को झूठा साबित कर दिया.
ये अपनी प्रारंभिक पढ़ाई हिंदी मीडियम से किए. यह अपनी प्रारंभिक पढ़ाई गांव के सरकारी स्कूल से किए. गोविंद बचपन से ही पढ़ाई में तेज थे. इनका परिवार किराए के एक छोटे से मकान में रहा करता था.
गोविन्द जैसवाल एक हिंदी मीडियम के छात्र है. इनकी प्रा. शिक्षा गाव के सरकारी स्कूल से की. बचपन से ही ये पढाई में काफी अच्छे थे. इनका परिवार एक छोटे से किराए के मकान में रहता था. इनके माता-पिता और दो भाइयों के अलावा इनकी परिवार में उनकी दो बहने भी थी. गोविंद का परिवार जिस मोहल्ले में रहता था वहां काफी शोरगुल हुआ करता था. वह काफी सारी फैक्ट्रियां थी. भूल के कारण गोविंद दिन में पढ़ाई नहीं कर पाते थे इसलिए वह रात को दिया और मोमबत्ती की रोशनी में पढ़ाई किया करते थे.
इन्होने ने अपनी जिंदगी में घोर गरीबी का सामना किया और वहां बिजली नहीं होने के कारण उनकी पढ़ाई भी ठीक से नहीं हो पाती थी. गोविंद के साथ बचपन में एक बहुत बड़ी घटना हुई, गोविंद के दोस्त ने अपने घर गोविंद को इसलिए नहीं आने दिया क्योंकि गोविंद एक रिक्शा चलाने वाले के बेटे थे. उस समय उन्हें यह बात समझ नहीं आई लेकिन जैसे उन्हें यह बात समझ आई यह बात उनके दिल पर एक गहरा छाप छोड़ गई और तभी उन्होंने ठान लिया कि उन्हें जिंदगी में कुछ बड़ा करना है.
जब 12वीं साइंस से किया उसके बाद लोगों ने उन्हें इंजीनियरिंग करने की सलाह दी लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी इसलिए उन्होंने इंजीनियरिंग में एडमिशन नहीं लिया. उन्होंने अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से किया. ग्रेजुएशन करने के बाद गोविंद दिल्ली गए वहां उन्होंने किसी तरह किराए का मकान लिया लेकिन यहां भी उन्होंने लोगों से कई ताने सुने. लोग बोलते थे तू भी अपने बाप की तरह एक रिश्ता खरीद ली और उसे चला कोई बोलता था कि सपने देखने से सपने पूरे नहीं हो जाते. गोविंद नकारात्मकता को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया.
जिस समय गोविंद आईएएस की तैयारी दिल्ली से कर रहे थे तभी उनके पिता के पैर में चोट लग गई तब उनके पास किताब खरीदने के भी पैसे नहीं थे. जिसके बाद उन्होंने आठवीं तक के बच्चों को ट्यूशन देना शुरू किया. गोविंद की आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो गई क्यों नहीं अपनी एक जमीन ₹30000 में बेचनी पड़ी.
लेकिन गोविंद ने ठान लिया था कि उन्हें IAS हर हाल में बनना है एक साल की मेहनत के बाद अपने पहले ही प्रयास में 48 वी रैंक हासिल की और बन गए एक भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी. साथ ही वे हिंदी माध्यम के टॉपर भी रहे थे.
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