High Court Decision: माता पिता की सेवा नहीं करने वालों को हाईकोर्ट ने दिया तगड़ा झटका, सुनाया ऐतिहासिक फैसला

My job alarm – (High Court Decision) वृद्धजनों की पल-पल की घुटन, तनाव, जीवन-निर्वाह करने की जटिलता एवं उपेक्षा को लेकर समय-समय पर जहां न्यायालयों ने अपनी चिन्ता जतायी है, वहीं सरकार ने कानून बनाकर बुजुर्गों को उन्नत एवं शांति देने के प्रयास किये हैं, लेकिन इसके बावजूद वृद्ध लोगों   का जीवन कष्टमय एवं जटिल बना हुआ है। वृद्ध माता-पिता की देखभाल एवं भरण-पोषण की जिम्मेदारी से मुंह मोड़ने की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। अदालतों में गुजारा-भत्ते से जुड़े विवाद बड़ी संख्या में सामने आ रहे हैं। 

 

हाल ही में एमपी के हाईकोर्ट में ऐसा ही मामला सामने आया हैं कि नरसिंहपुर के बेटे ने वृद्ध मां का भरण पोषण करने से इनकार किया था। हाई कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि माता-पिता (care of elderly parents) को संपत्ति देने या न देने से बच्चों का भरण पोषण करने का कर्तव्य नहीं बदलता। भले ही माता-पिता ने अपनी संपत्ति बच्चों को न दी हो, फिर भी बच्चों का कर्तव्य बनता है कि वो अपने माता-पिता की देखभाल करें। आइए जानते हैं हाईकोर्ट का ये अहम फैसला विस्तार से-

 
बता दें कि इस मामले में एक बुजुर्ग महिला ने अपने बेटे के खिलाफ गुजारा भत्ता देने का केस दायर किया था। महिला ने निचली अदालत में अपने बेटे पर आरोप लगाया कि वह उसका भरण-पोषण करने से (law for the elderly) इनकार कर रहा है। एसडीएम और एडीएम कोर्ट ने महिला के पक्ष में फैसला सुनाया और बेटे को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। इस फैसले को बेटे ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।

 

माता-पिता का भरण पोषण बच्चों का कर्तव्य –
आजकल के बच्चों के मन में यही होता हैं कि मां-बाप जिस बच्चे को ज्यादा प्रॉपर्टी देगें उनका भरण-पोषण वही करेगें। लेकिन हाई कोर्ट ने साफ-साफ बता दिया कि माता-पिता का भरण-पोषण इस बात पर निर्भर नहीं (mp high court big order) करता कि उन्होंने बच्चों को कितनी संपत्ति दी है। कोर्ट ने आगे कहा कि बच्चों का कर्तव्य है कि वे अपने माता-पिता का भरण पोषण करें। हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए बेटे को आदेश दिया कि वह अपनी मां को 8000 रुपये प्रति माह गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया हैं। 

 

इस नियम के तहत लिया निर्णय –
बता दें कि अधिनियम, 2007 के अनुसार न्यायालय ने माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण पोषण और कल्याण (Parents Prperty Righs) करने का हवाला देते हुए कहा कि यह कानून बुजुर्ग माता-पिता को उनके बच्चों द्वारा परित्यक्त और उपेक्षित होने से बचाने के लिए बनाया गया है।

 

बेटे की दलील पर कोर्ट की फटकार –
इस मामले में बेटे ने अपनी मां पर केस दिया था कि मां ने उसे कोई संपत्ति नहीं दी हैं। इसलिए वह उसका भरण-पोषण और गुजारा भत्ता देने का जिम्मेदार नहीं हैं। इस पर हाई कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि माता-पिता का कर्तव्य निभाना बच्चों की नैतिक जिम्मेदारी है। हाई कोर्ट के जस्टिस (Elderly parents) गुरपाल सिंह अहलूवालिया की एकल पीठ ने यह फैसला सुनाया है। उन्होंने साफ किया कि अगर याचिकाकर्ता अपने माता-पिता के द्वारा संपत्ति के असमान बंटवारे से व्यथित है तो उसके पास अलग से सिविल मुकदमा दायर करने का विकल्प है। वह अपने माता-पिता का भरण पोषण करने के दायित्व से दूर नहीं भाग सकता।
 

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