supreme court : प्राइवेट प्रोपर्टी पर सरकार का कितना हक, सुप्रीम कोर्ट ने पलटा 46 साल पुराना फैसला
My job alarm – (SC decision on private property): अपनी गाढ़ी कमाई से हर कोई पाई-पाई जोड़कर प्रोपर्टी खरीदता है। यह आमतौर पर लाइफ का सबसे बड़ा सौदा भी होता है। इस पर सरकार अपना कितना अधिकार रखती है, इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया है। इस फैसले में कोर्ट ने कहा है कि सरकार किसी निजी संपत्ति को किसी विशेष परिस्थिति में ही अपने अधीन ले सकती है, हर निजी संपत्ति को लेकर सरकार को यह अधिकार (Govt rights of private property acquisition) नहीं है। यह फैसला कोर्ट ने करीब साढ़े 4 दशक पुराना अपना ही फैसला पलटते हुए दिया है।
फैसले के साथ ही छिना सरकार का यह अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 39(B) (decision about Article 39(b)) से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में फैसला सुनाया, जो निजी संपत्तियों और समुदाय की भलाई के लिए संपत्ति के अधिग्रहण (private property acquisition rules) से संबंधित है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई में संविधान पीठ ने बहुमत से अपना निर्णय सुनाया। जस्टिस बीवी नागरत्ना ने इस फैसले से आंशिक असहमति जताई, जबकि जस्टिस सुधांशु धूलिया ने फैसले के सभी पहलुओं पर असहमत होकर अपनी अलग राय दी।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि संविधान के तहत राज्यों को यह अधिकार नहीं है कि वे सार्वजनिक भलाई के नाम पर सभी निजी संपत्तियों को अपने कब्जे में ले लें। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के साथ ही सरकार के कुछ अधिकार (acquisition rules of private property) भी छिन गए हैं। हालांकि, बेंच ने यह भी कहा कि राज्य कुछ खास मामलों में निजी संपत्तियों पर दावा कर सकते हैं।
CJI सहित ये थे बेंच में शामिल
सुप्रीम कोर्ट के फैसले में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ के साथ जस्टिस ऋषिकेश रॉय, जस्टिस बीवी नागरत्ना, जस्टिस सुधांशु धूलिया, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह भी शामिल थे।
इस पुराने निर्णय को पलटा सुप्रीम कोर्ट ने
सुप्रीम कोर्ट ने एक नए फैसले में 1978 (private property acquisition rules in 1978) में जस्टिस कृष्णा अय्यर द्वारा दिए गए एक 46 साल पुराने निर्णय को खारिज कर दिया है, जिसके तहत सरकार से निजी संपत्तियों पर कब्जे का अधिकार छीन लिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सरकार को हर निजी संपत्ति पर अधिकार नहीं है और वह सिर्फ सार्वजनिक भलाई के नाम पर निजी संपत्तियों को अपने कब्जे में नहीं ले सकती। जस्टिस अय्यर ने अपने फैसले में कहा था कि राज्य संविधान के अनुच्छेद 39(B) के तहत सभी निजी संपत्तियों को अधिग्रहित कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने अब इस निर्णय (rights of private property acquisition) को बदलते हुए नई स्थिति स्पष्ट की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 1960 और 70 के दशक में भारत की आर्थिक नीतियां अलग थीं जो समाजवादी धारा की थीं, लेकिन 1990 के दशक से बाजार उन्मुख की ओर अर्थव्यवस्था चल पड़ी। कोर्ट ने यह भी बताया कि भारत की आर्थिक दिशा किसी एक विशेष मॉडल तक सीमित नहीं है। इसका मुख्य उद्देश्य उभरती हुई चुनौतियों से लड़कर आगे बढ़ना है।
क्या है, संविधान का अनुच्छेद 31C
सुप्रीम कोर्ट ने अपने अहम फैसले में कहा कि निजी संपत्ति केवल व्यक्तिगत अधिकार का विषय है और इसे सामूहिक भौतिक संसाधन नहीं माना जा सकता। सुप्रीम कोर्ट के सात जजों ने मिलकर एक अहम फैसला सुनाया है, जिस पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने भी अपने हस्ताक्षर कर सहमति दिखाई है। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 31C को केशवानंद भारती मामले (Kesavananda Bharti case) में जो हद तक बनाए रखा गया था,उसे उचित बताया है और उसे वैसा ही रखने का आदेश भी दिया है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी कानून को निरस्त करना और उसे फिर से लागू नहीं करना, विधायिका के इरादों के खिलाफ होगा और संविधान के मूल ढांचे को कमजोर कर सकता है। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि 42वें संविधान संशोधन के तहत अनुच्छेद 39(B) को निरस्त करने का उद्देश्य था और इसे अब भी लागू किया जाएगा।
महाराष्ट्र के कानून को लेकर यह का सुप्रीम कोर्ट ने
महाराष्ट्र में 1986 के एक कानून संशोधन से जुड़ी 16 याचिकाओं पर भी सुप्रीम कोर्ट ने अपना निर्णय (private property acquisition rules) सुनाया है, जिनमें मुंबई के निजी संपत्ति मालिकों की याचिकाएं भी शामिल थीं। इस संशोधन के तहत राज्य सरकार को पुरानी बिल्डिंगों की मरम्मत और सुरक्षा के लिए उन पर कब्जा करने का अधिकार मिला था। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह संशोधन उनके अधिकारों का उल्लंघन करता है और उनके साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार हो रहा है।
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