RBI ने इन 3 बैंकों को माना सबसे सेफ, इनमें कभी नहीं डूबेगा ग्राहकों का पैसा

My job alarm –  बैंक डूबने या दिवालिया होने की स्थिति से निपटने के लिए बैंक ग्राहकों की जमा पूंजी पर इंश्योरेंस कवर देते हैं जो 5 लाख रुपये का होता है। पहले ये राशि 1 लाख रुपये होती थी। यह कवर डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन (DICGC) के तहत दिया जाता है। ये रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की पूर्ण स्वमित्व वाली कंपनी है। यहां आपके लिए ये जानना भी जरूरी है कि अगर आपने अपने नाम से एक ही बैंक की अगल अलग ब्रांचों में अकाउंट है तो ऐसे में सभी खातों को एक ही माना जाएगा। इन सबकी राश‍ि जोड़ी जाएगी और सबको मिलाकर अगर आपका पैसा 5 लाख रुपये से कम है तो जितनी जमा रकम है, उतनी ही राशि मिलेगी। वहीं अगर 5 लाख से ज्‍यादा रकम जमा है, तो सिर्फ 5 लाख ही मिलेंगे। फिर चाहे आपकी जमा रकम इससे कितनी भी ज्यादा हो। अब यहां सवाल है कि देश का सबसे सेफ बैंक कौन सा है। किस बैंक में आपका पैसा नहीं डूबेगा या फिर डूबने के सबसे कम चांस है। इसी को लेकर RBI ने देश के सबसे सुरक्षित बैंकों की लिस्ट जारी की है।

रिजर्व बैंक (RBI) ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI), एचडीएफसी बैंक (HDFC Bank), और आईसीआईसीआई बैंक (ICICI Bank) को एक बार फिर डोमेस्टिक सिस्टमैटिकली इंपोर्टेंट बैंक्स (D-SIBs) की लिस्ट में शामिल किया है। यह लिस्ट 13 नवंबर को जारी की गई। पिछले साल भी इन्हीं तीन बैंकों को डी-सिब्स का दर्जा दिया गया था।

डी-सिब्स बैंकों को देश की अर्थव्यवस्था के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। इन्हें घरेलू बैंकिंग सिस्टम के लिए सबसे सुरक्षित बैंक का दर्जा दिया जाता है। इन बैंकों का महत्व इतना अधिक है कि अगर इनमें से कोई बैंक संकट में पड़ जाए, तो इससे पूरी अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ सकता है। डी-सिब्स बैंकों  (D-SIBS Banks) की सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करना सरकार की प्राथमिकता होती है। इसीलिए, अगर ऐसे बैंकों को किसी समस्या का सामना करना पड़े, तो सरकार इन्हें बचाने के लिए कदम उठाती है। 

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI Update) ने डी-सिब्स (Domestic Systemically Important Banks) की सूची 31 मार्च 2024 तक के आंकड़ों के आधार पर तैयार की है। इन बैंकों को देश की अर्थव्यवस्था के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। डी-सिब्स बैंकों को अतिरिक्त कॉमन इक्विटी टियर-1 (CET1) बनाए रखना होता है। CET1 एक प्रकार की पूंजी होती है, जो बैंकों को जोखिम प्रबंधन में मदद करती है। डी-सिब्स बैंकों को अपने बकेट (श्रेणी) के अनुसार इस पूंजी को अधिक बनाए रखना पड़ता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि ये बैंक संकट की स्थिति में भी स्थिर और सुरक्षित बने रहें।

 

2014 में लागू हुआ था D-SIBs का कॉन्सेप्ट

भारतीय रिजर्व बैंक ने पहली बार घरेलू सिस्टम के लिए महत्वपूर्ण बैंकों की सूची तैयार करने यानी डी-सिब्‍स की अवधारणा को 10 साल पहले वर्ष 2014 में अपनाया था। 2015 में भारतीय स्‍टेट बैंक और फिर अगले साल वर्ष यानी 2016 में आईसीआईसीआई बैंक को इस सूची में रखा गया। 2017 में एचडीएफसी बैंक की एंट्री इस लिस्‍ट में हुई।

 

जानिये किस बकेट में है  कौन सा बैंक 

 

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने डी-सिब्स बैंकों को उनकी श्रेणी (बकेट) के अनुसार अलग-अलग CET1 (कॉमन इक्विटी टियर-1) मेंटेन करने का निर्देश दिया है।
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) को बकेट-4 में रखा गया है, जिसके तहत इसे 0.80 प्रतिशत अतिरिक्त CET1 बनाए रखना होगा। एचडीएफसी बैंक बकेट-2 (HDFC Bank Bucket-2) में शामिल है और इसे 0.40 प्रतिशत अतिरिक्त CET1 मेंटेन करना होगा। वहीं, आईसीआईसीआई बैंक बकेट-1 में है, और इसे 0.20 प्रतिशत अतिरिक्त CET1 बफर बनाए रखना होगा। यह अतिरिक्त पूंजी बैंकों को जोखिम प्रबंधन और उनकी वित्तीय स्थिरता बनाए रखने में मदद करती है। ये नए नियम 1 अप्रैल 2025 से लागू होंगे। इससे बैंकों की सुरक्षा और अर्थव्यवस्था की स्थिरता सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी।

 

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