Supreme Court Decision : किरायेदार के हक में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, मकान मालिक नहीं कर सकेगा जबरदस्ती
My job alarm – (Tenant Right): देशभर में काम की तलाश में हजारों लोग बड़े शहरों का रुख करते हैं और वहां किराए पर रहकर अपना गुजर-बसर करते हैं। बाहर से आए ये लोग, जब घर किराए (House on rent rule) पर लेते हैं, तो उनके लिए एक अच्छा मकान ढूंढना, उसके लिए सही किराया तय करना और वहां बसना एक लंबी प्रक्रिया होती, जिसमें समय और पैसे दोनों की खासी जरूरत होती है। किरायेदार अक्सर काफी सर्च करने के बाद ही अपने Budget और जरूरतों के हिसाब से मकान चुनते हैं। लेकिन कई बार, अनुबंध होने के बावजूद किरायेदारों को विभिन्न परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
यह परेशानियां खासकर तब बढ़ जाती हैं, जब किरायेदार को मकान मालिक (landlord rights) के अनुचित रवैये का सामना करना पड़े। अक्सर किरायेदार, मकान मालिक के घर में रहते हुए कोई गड़बड़ी होने पर चुप रह जाते हैं, क्योंकि वे दूसरे के घर में रह रहे होते हैं। लेकिन यह समझना महत्वपूर्ण है कि किरायेदारों के भी अधिकार (tenants’ rights) होते हैं, और उनके हितों की रक्षा के लिए कानून भी बनाए गए हैं।
किरायेदार के हक में SC का बड़ा फैसला –
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court Decision) ने हाल ही में किरायेदारों के हक में एक बड़ा फैसला सुनाया है। यदि कोई किरायेदार किसी मजबूरी के चलते समय पर किराया नहीं चुका पाता है, तो इसे अपराध नहीं माना जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के अनुसार, अगर किरायेदार की वित्तीय स्थिति या कोई अन्य मजबूरी उसे समय पर किराया देने में असमर्थ बनाती है, तो इस मामले में उसे अपराधी नहीं माना जा सकता। इस निर्णय से किरायेदारों को एक बड़ी राहत मिली है, क्योंकि इसके तहत उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत कोई मामला दर्ज नहीं किया जा सकता।
यह फैसला उन किरायेदारों के लिए राहत भरा है, जो कभी-कभी आर्थिक तंगी या किसी आपात स्थिति के कारण किराया देने में असमर्थ हो जाते हैं। इस स्थिति में, मकान मालिक किरायेदार (landlord tenant rights) पर अनावश्यक दबाव नहीं डाल सकते, और न ही उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकते हैं। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि किरायेदार अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाते हैं। किरायेदार को बाद में किराया चुकाना ही पड़ेगा, लेकिन मकान मालिक को इस बात का ख्याल रखना होगा कि वह किसी तरह की जबरदस्ती न करें।
जानिये क्या है पूरा मामला –
यह मामला नीतू सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य की याचिका से संबंधित है, जिसमें जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने सुनवाई की। कोर्ट ने इस केस को खारिज करते हुए एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की कि किराया (Landlord and Tenant Rights) न चुकाना कोई अपराध नहीं है, भले ही शिकायत में दिए गए तथ्य सही हों। कोर्ट ने कहा कि किराया न चुका पाने पर कानूनी प्रक्रिया अपनाई जा सकती है, लेकिन इसे भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत अपराध नहीं माना जाएगा। इस मामले में धारा 415 (धोखाधड़ी) और धारा 403 (संपत्ति का बेईमानी से दुरुपयोग) को लागू करने के लिए आवश्यक तत्व नहीं थे। इसी आधार पर कोर्ट ने मामले से जुड़ी एफआईआर (FIR) को रद्द कर दिया, यह स्पष्ट करते हुए कि किरायेदार पर केवल सिविल कानून के तहत ही कार्रवाई की जा सकती है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिया था ये फैसला –
इससे पहले यह मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) के पास था, जहां अपीलकर्ता ने अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी। हालांकि, हाईकोर्ट ने एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया और साथ ही किराएदारों से बकाया किराया वसूलने का रास्ता भी सुझाया। शिकायतकर्ताओं ने कोर्ट के सामने यह भी बताया कि किराएदार पर बड़ी रकम बकाया है, जिससे उनकी परेशानी बढ़ गई है। दलीलें सुनने के बाद, कोर्ट की बेंच (supreme court judgement) ने कहा कि चूंकि किराएदार ने संपत्ति खाली कर दी है, इसलिए इस मामले को सिविल रेमेडीज के तहत हल किया जा सकता है। कोर्ट ने इसके लिए अनुमति दे दी, यानी मकान मालिक सिविल प्रक्रिया के तहत किराया वसूलने (Rules for fare collection) के लिए उचित कदम उठा सकते हैं।
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